Ancient History of Maa Bmleshwari Temple – A love story from where Dongargarh is associated, Maa Bamleshwari Devi awakened by the praise of King Vikramaditya.
Ancient History of Maa Bmleshwari Temple Dongargarh
डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगाँव जिले में स्थित एक शहर है, जो राजनांदगांव से लगभग 44 की.मी. दूर है। हावड़ा मुंबई राष्ट्रिय राजमार्ग ( हावड़ा से हजीरा ) में राजनांदगांव से 18 की.मी. दूर तुमगांव से दांयी ओर ( तुमगांव से 26 की.मी. ) स्थित है। तुमगांव से डोंगरगढ़ जाने के रास्ते में प्रज्ञा गिरी नामक स्थान भी है जहाँ बुद्ध की विशाल प्रतिमा एक पहाड़ी पर स्थित है, यह स्थान भी घुमने के दृष्टिकोण से बहुत ही मनमोहक है।
Ancient History of Maa Bmleshwari Temple Dongargarh – मां बमलेश्वरी मन्दिर डोंगरगढ़ – चारो तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, यहाँ माता का मन्दिर छत्तीसगढ़ के सबसे ऊँची चोटी ( लगभग 1600 फिट ) पर स्थित है। इस मन्दिर की मान्यता है की जो कोई भी सच्चे मन से यहाँ प्रार्थना करें उसकी संतान उत्पति की मनोकामना पूर्ण होती है।
इस नगर की एक प्राचीन कहानी है जो एक प्रेम कथा से जुडी हुई है। नवरात्री के समय यहाँ भक्तो की बहुत ज्यादा भीड़ होती है. चूँकि यह रेलवे का एक स्टेशन है,यहाँ मुम्बई हावड़ा मार्ग की लगभग सारी ट्रेन रूकती है, जिसकी वजह से भक्तों और श्रधालुओं का मेला सा लगा रहता है।
रात में पहाड़ी से यह शहर बहुत ही मनमोहक लगता है, लगता है जैसे आसमान में तारें टिमटिमा रहें हो।
नगर का प्राचीन इतिहास
लगभग 2200 साल पहले, ये स्थान कामाख्या नगरी में था। यहां के राजा वीरसेन को काई पुत्र नहीं हुआ तो उन्होंने मां दुर्गा और शिव की उपासना की। मां दुर्गा और भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम मदनसेन रखा। मां दुर्गा और भगवान शिव का आभार व्यक्त हेतु राजा वीरसेन ने पहाड़ी पर मां बगलामुखी ( माँ बमलेश्वरी ) का मंदिर बनवाया था। राजा मदनसेन का कामसेन नाम का एक पुत्र था, जिसके कारण यह क्षेत्र प्रसिद्ध हो गया और कामाख्या नगरी ( कामावती नगर ) के नाम से जाना जाने लगा।
राजा विक्रमादित्य के तप से प्रकट हुई माँ – जागृत रहने का किया आह्वान
वीरसेन के बाद मदनसेन और उनके बाद इनके पुत्र कामसेन ने कामाख्या नगरी की गद्दी संभाली। कामसेन राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे। कामसेन के दरबार में एक नर्तकी कामकंदला थी जिसपर एक संगीतज्ञ माधवनल मोहित हो गया। बाद में दोनों प्यार हो गया।
कामसेन का पुत्र मदनादित्य पिता के स्वभाव के विपरीत व्यभिचारी और अय्याश किस्म का था। उसकी नजर कामकंदला पर थी। राजा कामसेन द्वारा माधवनल को उपहार दिए जाने पर माधवनल उसे कामकंदला को दिए जाने पर राजा क्रोधित होकर उसे नगर से निकल जाने का आदेश देते है और माधवनल बाहर न जाकर वहीँ पहाड़ो की गुफा में रहने लगा।
जब मदनादित्य को पता चला कि कामकंदला माधवनल से प्यार करती है तो उसे बंदी बना लिया और माधवनल को पकड़ने के लिए सिपाही भेजे। इधर माधवनल भागते हुए उज्जैन नगरी जा पहुंचा और राजा विक्रमादित्य से अपने प्यार और उसके साथ हुई सारी घटना बता दी। विक्रमादित्य ने प्यार का साथ दिया और कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया। पूरा राज्य तहस-नहस हो गया और माधवनल के हाथों मदनादित्य मारा गया।
Ancient History of Maa Bmleshwari Temple Dongargarh – मां बमलेश्वरी मन्दिर डोंगरगढ़ – में केवल ऊंची छोटी पहाड़ियां ही बची थीं जिन्हें डोंगर कहते हैं। ऐसे में डुंगराज्य नगरी की पृष्ठभूमि यहीं से तैयार हुई। राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रमियों के प्रेम की परीक्षा लेनी चाही और कामकंदला से कह दिया कि माधवनल युद्ध में मारा गया।
यह सुनकर कामकंदला सरोवर में कूदकर अपनी जान दे दी, और माधवनल ने जब यह सुना की अब कामकंदला नहीं रही तो उसने भी अपनी जान दे दी। यह देख राजा विक्रमादित्य बहुत ही व्याकुल हुए और माँ बगुलामुखी की उपासना करने लगे और माँ से अपने प्राण त्यागने की बात कही तभी माता प्रकट हुयी और उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
राजा विक्रमादित्य ने माता से दोनों को जीवित कर यहीं जागृत रूप में रहने का आह्वान किया तभी से मां यहां जागृत रूप में हैं। यहीं पास में कामकंदला सरोवर जहां नर्तकी कामकंदला ने कूदकर जान दी थी।